साभारःद संडे इंडियन, 11 जुलाई 2010
अभिज्ञात की कहानियों का यह संग्रह उनकी कुल दो दर्जन प्रकाशित अप्रकाशित कहानियां समेटे हुए है. इनमें किंचित लम्बी अधिकतर छोटी तथा कुछ लघु कथाएं शामिल हैं.अभिज्ञात की इन कहानियों की खूबी यह है कि इनकी किस्सागोई पाठकों को कहानी के साथ लिए चलती है. पढ़ने वाला कहानी का महज पाठक न होकर उसका एक हिस्सा बन जाता है. उल्लेखनीय बात यह है कि अभिज्ञात की कहानियों का सिर्फ कथ्य और उसके लिहाज से उसकी भाषा ही नहीं बदलती पूरा का पूरा शिल्प और शैली भी बदल जाती है. इन दो दर्जन कहानियों को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि यह किताब जैसे कहानियों का पहुदर्शी या एक कैलाइडोस्कोप हो या फिर अलग-अलग रंग-ढंग की कथा शैलियों से बना एक खूबसूरत गुलदस्ता.
अभिज्ञात की कहानियों का कथ्य तथा बुनावट की विविधता को देखकर लगता है कि उनका अनुभव फलक काफी विस्तृत है.लेखक पेशे से पत्रकार हैं, इसलिए यह बात आसानी से समझी जा सकती है. आधुनिकता के नाम पर बेवजह अमूर्तता या अपना दर्शन बघारने की बजाए अभिज्ञात ने कहानियों को धरातल पर ही रखा. सहज, सुबोध और तरल. इसी के चलते अभिज्ञात की कहानियां समाज के सरोकारों, संवेदनाओं, समस्याओं, रिश्ते नातों की जटिलताओं को भी बिना किसी तरह के शब्दाडंबर फैलाए, उपदेश पिलाये बेहद साफगोई के साथ उकेरती हैं. वह चाहे व्यवस्थागत खामियों की बात कर रहे हों या समाजिक विद्रूपता की, बिना अतिरंजकता का सहारा लिए वे चौंकाते हैं और उस पर ध्यान आकर्षित कर के लिए मजबूर करते हैं. उनकी यह खूबी उन्हें बड़े रचनाकार की पांत की तरफ ले जाती है.
कहानी संग्रह में शामिल सर्पदंश, शिनाख्त नहीं जैसी कुछ कहानियां साधारण हैं लेकिन एक हिट भोजपुरी फिल्म की स्टोरी, क्रेजी फैंटेसी की दुनिया या फूलबागान का सपना जैसी कहानियां अभिज्ञात के कथा कौशल की बेहतर परिचायक हैं. कहानी विधा में रुचि रखने वाले पाठकों को यह पुस्तक निराश नहीं करेगी.