Apr 08, २०१०-03:00 am
कोलकाता। वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यिक पत्रिका हंस के कार्यकारी संपादक संजीव ने कहा कि दिल्ली में दलाली हो सकती है लेकिन साहित्य चर्चा की गुंजाइश नहीं है। दिल्ली की संवेदना सूख चुकी है। ऐसे माहौल में चौधराहट तो संभव है लेकिन साहित्य की संभावना नहीं रहती है। साहित्य के लिए संवदेना की जरूरत है और दिल्ली में इसकी भारी कमी है। यदि बंगाल में उन्हें अवकाश के बाद आठ हजार रुपये की नौकरी मिल जाती तो कभी दिल्ली की ओर रुख नहीं करते। संजीव भारतीय भाषा परिषद की ओर से आयोजित लेखक से मिलिये कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य का आज यह दुर्भाग्य है कि जितने लेखक हैं उतने पाठक हैं। वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह कविता के आलोचक हैं और कहानी और उपन्यास पर टिप्पणी कर रहे हैं। राजेन्द्र यादव लेखन में सेक्स ढूंढ रहे हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य की अपनी शर्त है और जब तक लेखक उसे पूरा नहीं करता है तब तक आम पाठक के लिए संप्रेषण मुश्किल है। उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया पर कहा कि मेरी शुरू से शोध कर लिखने की आदत रही है। जब तक लेखक द्वंद्व के नये क्षेत्रों का अन्वेषण नहीं करेगा तब तब धारण स्पष्ट नहीं होगी। रुस के मैक्सिम गोर्की उनके पसंदीदा लेखक हैं। और उनकी सबसे बड़ी खासियत है कि वे जो देखते थे उसे हूबहू लिखते थे। उन्होंने कहा कि आज जिस ढंग से कहानीकारों की फौज तैयार हो रही है और कुछ दिन बाद गुम हो जा रही है यह चिंता का विषय है। हम जिस समय में जी रहे हैं उस समय में जीने का कोई तुक समझ में नहीं आ रहा है। इस मौके पर पत्रकार एवं युवा कथाकार अभिज्ञात के कहानी संग्रह तीसरी बीवी का संजीव ने लोकार्पण किया। युवा लेखक हितेन्द्र पटेल ने कहा कि अभिज्ञात की कहानी सोचने को बाध्य करती है यही उनकी पहचान है। वरिष्ठ लेखक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि अभिज्ञात की कहानियों में निराशा का बोध होता है। रचनधर्मी जीवन सिंह ने तीसरी बीवी संग्रह के कुछ कहानियों पर प्रकाश डाला। बांग्ला के वरिष्ठ कवि अर्धेन्दू चक्रवर्ती ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों में रचनाकारों की रचना पर सामूहिक रूप से चर्चा होनी चाहिए। अतिथियों का स्वागत व कार्यक्रम का संचालन भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं समीक्षक डा. विजय बहादुर सिंह ने किया।
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