Monday 14 June 2010

अभिज्ञात की दुनिया में सच के 25 रूप

समीक्षा
सुधीर राघव
( हिन्दुस्तान, चंडीगढ़ 13 जून 2010 को प्रकाशित)
अभिज्ञात अपनी बसाई दुनिया लेकर फिर पाठकों के सामने हाजिर हैं। यह दुनिया है उनके लिए जो सपने देखना पसंद करते हैं, मगर हर कहानी पाठक को सपनों के आकाश से हकीकत के उस धरातल पर ले आती है, जो कढ़ाई में खदकते हलवे की तरह बुलबुले छोड़ रहा है। हर बुलबुला जिंदगी के एक सच से पहचान करवाता है और अपना स्वाद छोड़ जाता है। सच के इतने रूप लेखक अपनी जिंदगी के चारों ओर से ही तलाश कर लाया है। अभिज्ञात के अंदर छुपे पत्रकार की पारखी नजर और संवेदनशील कवि इस सच को शब्दों की सजीवनी से साक्षात करता है। मिस्र की संरक्षित ममियां भले ही अपने युग को फिर कभी नहीं जिएंगी पर अभिज्ञात के पात्र लौट-लौटकर आते हैं और सीधे पाठक के जेहन में उतर जाते हैं।

इस संग्रह की अधिकतर कहानियां कादम्बिनी, हंस, वागर्थ, वर्तमान साहित्य और वामा जैसी प्रतिष्ठित साहित्यक पत्रकाओं में छप चुकी हैं। पहली ही कहानी -कॉमरेड और चूहे- हमारे चिकित्सा शिक्षण संस्थानों के हालात बयां करती है कि किस तरह एक आदर्श को कुतरने के लिए यहां के चतुर्थश्रेणी कर्मचारी ही काफी हैं। स्वार्थ अभिज्ञात की लेखनी से नए अर्थ लेकर निकलता है, कहानी -औलाद- में। एयरहोस्टेस मां अपने नाजायज नवजात को न बचाने के लिए डॉक्टर से कहती है, मगर डॉक्टर उसे इसलिए बचाना चाहता है, क्योंकि यह उसका पहला ही केस है। लघुकथा -बंटवारे-यह बता कर चौंकाती है कि जब कोई घर बंटता है तो सबसे ज्यादा खुश भिखारी होते हैं कि अब उन्हें एक की जगह चार घर से भीख मिलेगी। -तीसरी बीवी-कोलकात्ता में बसे बांग्लादेशियों की बदतर जिंदगी की झलक दिखाती है। आज स्त्री भले अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करे मगर पुरुष उसके आर्थिक और यौन शोषण पुराने हथकंडों अपना कर ही करता है। यहां कोई बदलाव नहीं है। औरत की आजादी किसी को बर्दाश्त नहीं। भले ही कुलटा कहानी में किसी पात्र का नाम नहीं है मगर यह कुलटा की गाली से भयभीत सभी स्त्रियं के साझा डर का दर्शाती है। पति-पत्नी के बीच नौकझौंक की एक बहुत ही रोचक कहानी है फिर मुठभेड़। यह बिल्कुल नए अंदाज में हैं, शादी की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर भी यह जोड़ा दिनभर यह वादा करने के बाद कि आज नहीं लड़ेंगे रात को जरा सी बात पर आपस में मारपीट करके ही सोता है। इस कहानी संग्रह में कुल 25 कहानियां हैं और सब सच के इतने ही रूप दिखाती हैं।

इस तरह कहानियां मर्म को बेधती हैं, हूक पैदा करती हैं तो कभी ढांढस बंधाती हैं। इनमें अनुभव, संवेदना और मर्म साथ-साथ चलते हैं। लेखक किसी एक अंदाज में बंधी किस्सागोई नहीं करता, इसलिए पाठक दूर तक उसके साथ चलता है और ऊबता भी नहीं है।

कहानी संग्रह-तीसरी बीवी
प्रकाशक : शिल्पायन
मूल्य : 150 रुपये
आवरण चित्र : डॉ. लाल रत्नाकर

Sunday 6 June 2010

एक बेचैन करने वाली दुनिया से गुज़रते हुए

पुस्तक समीक्षा
-उमेश कुमार राय
एक समय था जब कहानियां आलोचना के आधार पर लिखी जाती थी। कहानियों की भाषा, विषयवस्तु, भूमिका और उनकी इति श्री आलोचना को ध्यान में रखकर ही की जाती थी। लेकिन इधर कुछ समय से इस परंपरा में काफी बदलाव आया है। अब के रचनाकार आलोचनाओं के मानदंडों के आधार कहानियां नहीं लिखते। वे कहानियों में नये प्रयोग कर रहे हैं जिस कारण अब कहानियों के आधार पर आलोचना लिखने की जरूरत महसूस होने लगी है। खास तौर पर अभिज्ञात जैसे कथाकारों की कहानियों की व्याख्या के लिए कहानी आलोचना के मानकों को अधिकाधिक औज़ारों से लैस होना होगा। यथार्थ, फैंटेसी और कल्पना के कलात्मक रचाव के साथ समकालीन जटिलताओं को उन्होंने जिस तरीके से अपनी कहानियों उकेरा है, वह पाठक को भले लगभग सम्मोहित करता हो पर उसकी व्याख्या कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। पत्र-पत्रिकाओं में अपनी दर्जन भर महत्वपूर्ण कहानियों से भी साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर बरबस आकृष्ट करने वाले अभिज्ञात का पहला कहानी संग्रह हिन्दी कहानी की एक महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि इसके बाद कहानी का संसार वह नहीं रह गया है जो पहले था। अपनी कहानियों से कहानी का स्वरूप बहुत बारीकी से उन्होंने बदला है। उनके कहानी संग्रह 'तीसरी बीवी' की कहानियां उदय प्रकाश की कहानियों के उदय के बाद एक नया प्रस्थान हैं। संग्रह की कहानियों की शुरुआत दिलचस्प तरीके से होती है और वह अन्त तक पाठक पर अपनी गिरफ्त बनाये रखने में कामयाब हैं। इन कहानियों की एक विशेषता यह है कि इनके नायक शेक्सपीयर के पात्रों की तरह आत्मग्लानि से भरकर आत्महत्या की राह नहीं चुनते बल्कि वे समय की मांग समझकर उन परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं। यह समझौता पाठक को देर तक झकझोरता है और स्थितियों को बदलने में उनकी पहल की भी मांग करता दिखायी देती है। कहानियों में घटनाएं परिस्थितियों से संचालित हैं इसलिए यह कहानियां चुपचाप व्यवस्था की खामियों की तरफ पाठक का ध्यान खींचती हैं और उनकी विसंगतियों को उजागर करती हैं। कहानियों के पात्र यथार्थ से टकराते हैं टूटते हैं, पर पलायन नहीं करते। उनकी जीजिविषा ही उनकी सम्पदा बनती है। तभी तो अपनी
बेटी का भरण पोषण कर पाने में असमर्थ 'तीसरी बीवी' कहानी का नूर अपनी बेटी को हबीब की तीसरी बीवी महज इसलिए बना देता है क्योंकि सर्द रात में उसके पास बिस्तर नहीं है। जश्न कहानी का करमु कौवे का मांस खाने से भी नहीं हिचकता। संग्रह की सभी कहानियों के पात्र और
नायक जीवन से जुड़े हुए हैं। कई कहानियों के नायक ड्राइवर, मिल मजदूर, झुग्गी-झोपडिय़ों में रहने वाले लोग हैं जिन्हें हमलोग हर रोज आसपास देखते और रूबरू होते हैं लेकिन उनकी वस्तुस्थिति से हम अपरिचित है।
संग्रह की पहली कहानी कामरेड और चूहे हंस में प्रकाशित होने के बाद चर्चा में आयी थी। कहानी के माध्यम से कम्युनिस्ट शासित राज्यों में सर्वहारा वर्ग की दारुण स्थिति को दर्शाया गया है और साथ ही इसके माध्यम से यह बताने की कोशिश की गयी है कि यदि गरीब को उनका उचित मेहनताना ना मिले तो किस तरह वे संवेदन शून्य हो जाते हैं और शव को भी टुकड़ों टुकड़ों में बेच देते हैं। इसमें व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी दिखाया गया है जिसके चलते अच्छी नीयत से काम करने वालों को पछतावे के सिवा कुछ और हाथ नहीं लगता। लोगों की कुर्बानियां व्यर्थ चली जाती हैं।
संग्रह की कहानी जश्न यूं तो है बहुत छोटी बमुश्किल 10-12 पंक्तियों की लेकिन सबसे दमदार। कहानी की शुरुआत मिल मजदूर करमु के पगार मिलने से होती है। पगार मिलने से करमु काफी खुश है और काफी दिनों बाद मछली खरीदकर लाया है। यह देखकर उसके बच्चे और पत्नी भी बल्ली उछल रहे हैं क्योंकि काफी दिनों बाद उन लोगों को मछली खाने को मिलेगी। मछली धोने के लिए वह नाले के पास जाता है ताकि उसके पड़ोसी देखकर यह समझ लें कि वह भी मछली खा सकता है। वह नाले के पास मछली धो रहा होता है कि एक कौवा थाली में चोंच मार
देता है जिस कारण मछलियों के टुकड़े नाले में बह जाते हैं। मछलियों का नाली में बह जाने से वह इतना गुस्सा हो जाता है कि चप्पल उठाकर कौवे को दे मारता है और कौवा वहीं फर्श पर गिर पर प्राण त्याग देता है। इसके बाद वह मरे हुए कौवे घर ले जाता है और उसी को पकाकर खा जाता है। कौवे का मांस खाते वक्त करमु को घृणा नहीं बल्कि तृप्ति होती है। कहानी में कौवा उन मिल मालिकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो मजदूरों का हक डकार जाते हैं। वहीं, करमु के रूप में देश का सर्वहारा वर्ग खड़ा है। कहानी के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गयी है कि यदि मजदूरों को उनके हक से इसी तरह बेदखल किया जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब देश के करमु इन धन्ना सेठों को कौवों जैसी स्थिति कर देंगे।
क्रेजी फैंटेसी की दुनिया संग्रह की एक कहानी उल्लेखनीय कहानी है। इसके बारे में यह दावा किया जा सकता है कि यह विश्व स्तर की किसी भी कहानी के टक्कर की है। इसकी शुरुआत जिस तरीके से की गयी है उससे यह विज्ञान कहानी प्रतीत होती है लेकिन ज्यों ज्यों कहानी आगे बढ़ती है इस पर से रहस्य की परत हटती जाती है और फिर पता चलता है कि कैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियां तीसरी दुनिया में अपने उत्पादों को बेचने के लिए बीमारियां फैला रही हैं और केन्द्र सरकार बजाय ठोस कदम उठाने के उन कंपनियों की पिछलग्गू बनी हुई है। इसमें उन अंतर्राष्ट्रीय साजिशों को भी बेनकाब किया गया है जो अमीर देश गरीब देशों के साथ करते हैं और उनका शोषण करके भी उन पर अपनी मेहरबानियां लादते दिखायी देते हैं। इस कहानी में तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के ताने-बाने को भी उजागर किया गया है।
कहानीकार चूंकि पत्रकारिता से जुड़े हैं इसीलिए उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया पर भी एक कहानी लिखी है। 'सूखा सूखा कितना सूखा' कहानी के मार्फत पत्रकारिता की सफेद स्याह दुनिया का यथार्थ दिखाया गया है। कैसे एक अखबार अपना विक्रय बढ़ाने के लिए झूठी खबरों को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत करता है और किस तरह पत्रकार बनने की मनसा लेकर इस क्षेत्र में कूदे उत्साहित युवाओं का शोषण किया जाता है, यह सब इस कहानी में मौजूद है।
फूलबागान का सपना में एक मजदूर के जीवट की कहानी तो कहता ही है मौजूदा व्यवस्था में उसकी नियति को भी बयान करता है। औलाद कहानी मौजूदा दौर के लोगों को हृदयहीनता को व्यक्त करती है तो कुलटा और उसके बारे में आदि कहानियां स्त्री के दर्द और संघर्ष को व्यक्त करने में सक्षम हैं। कायाकल्प एक बच्ची के जीवन के बदलावों का विश्वस्त मनोवैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करती है। एक हिट भोजपुरी फिल्म का कहानी नौटंकी वालों से संघर्ष को भी व्यक्त करती है और उनके दमखम को भी। कुछ मिलाकर इन कहानियों से गुजरना समकालीन जीवन को एक नये संवेदनशील नजरिये से देखना और जानना है और बदलाव की एक बेचैनी को अपने मनोजगत में जगाना है क्योंकि जिस दुनिया से पाठक गुजरा है कुल मिलाकर एक बेचैन दुनिया है।

जीवनस्पर्श की कहानियां: तीसरी बीवी

-संजय कुमार सेठ/पुस्तक वार्ता ------------- हृदय’ और ‘बुद्धि’ के योग से संयुक्त ‘अभिज्ञात’ का ज्ञात मन सपने देखता है। ये सपने भी रो...