Thursday 25 March 2010

फ्लैप

अभिज्ञात की कहानियां अपने समय के सच को परत दर परत खोलती हैं और सच्चाई उनके लिए अर्जित की गयी शै नहीं है बल्क़ि वह सहसा जहां तहां से निकल कर पाठक के सामने आती है। कई बार वह अपनी बेलौस भंगिमा के कारण हकबका देती है तो कई बार वह मर्म को बेधती है, शर्मसार करती है, हूक पैदा करती है और कई बार ढांढस भी बंधाती है कि सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है। उनकी कहानियों में हताशा और पश्ती से उबरने की एक जिजीविषा है, जो मनुष्य की बेहतरी की संभावना की लगातार वकालत करती है। उनकी कहानियां समाज में खामोशी से चल रहे वैश्विक बदलाव को समझती भी हैं और उसके कारकों को समझने का प्रयास करते हुए उन्हें विश्लेषित भी करती चलती हैं, जो पाठक के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए उन्हीं के विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं। उनकी किस्सागोई का अन्दाज़ तयशुदा नहीं है, वे जहां कहीं से भी अपनी बात शुरू कर देते हैं और पाठक बरबस उनके साथ हो लेता है। अभिज्ञात के यहां शिल्प और भाषा के कई प्रयोग मिलेंगे और विविधता भी, क्योंकि कहानियां का परिदृश्य भी हर दूसरी, तीसरी कहानी में बदला नज़र आयेगा। उनकी कहानियों में अनुभव, संवेदना और विचार के साथ-साथ यथार्थ और स्वप्न, सच और झूठ की जुगलबंदी चलती रहती है, जो उन्हें अपने समकालीन कहानीकारों से अलग और विशिष्ट बनाता है। कवि भी होने के कारण उनकी कहानियों में स्फीति नहीं मिलेगी। लम्बी कहानी लिखने की उन्हें आवश्यकता महसूस नहीं होती क्योंकि वे संकेतों में ही बहुत सी बातें कहने का हुनर जानते हैं और बेहद छोटी सी दिखती कहानियां अपने निहितार्थ के कारण व्यापक विस्तार का परिचय देती हैं। प्रायः डेढ़ दो हज़ार शब्दों की उनकी कहानियां न सिर्फ़े एक व्यक्ति के पूरे जीवन को समटे हुए हैं बल्क़ि वे उस जैसे हज़ारों लोगों के दुःख सुख को समाहित किये हुए हैं। अभिज्ञात से कहानी जगत और समृद्ध होगा इसके संकेत इस संग्रह से गुज़रते हुए आपको बार-बार मिलेंगे। और वे जब कभी अपेक्षाकृत लम्बी कहानी लिखते हैं तो उसका विस्तार अपने संकेतों के बूते ही औपन्यासिकता का आस्वाद देता है, जिसका उदाहरण 'क्रेज़ी फैंटेसी की दुनिया' जैसी विरल कहानियां हैं, जो बहुआयामिता और अपनी अर्थ-सघनता के कारण क्लासिक है।

जीवनस्पर्श की कहानियां: तीसरी बीवी

-संजय कुमार सेठ/पुस्तक वार्ता ------------- हृदय’ और ‘बुद्धि’ के योग से संयुक्त ‘अभिज्ञात’ का ज्ञात मन सपने देखता है। ये सपने भी रो...