साभार: द पब्लिक एजेंडा 20 फरवरी 2010
कहानी
वह मज़दूर था चटकल का। उसे सपने एकदम नहीं आते थे। अलबत्ता वह सोचता कि काश उसकी ज़िन्दगी सपना ही होती और आंख खुलते ही वह सपना टूट जाता। वह जिस हक़ीकत में लौटता वह मजदूर जीवन न होता। कठिन मशक्कत के बाद रोटियां जुटती हैं। चार-चार बच्चे हो चुके थे। जिनमें तीन तो बेटियां थीं। कैसे वह उन्हें पार लगायेगी यह चिन्ता उसे अभी से सताने लगी थी। हालांकि चिन्ता करने के लिए भी उसके पास वक्त सीमित था क्योंकि काम से बाद उसके पास इतनी थकान रहती थी कि वह बाक़ी समय में खूब सोता। नींद से उठता तो नित्यक्रम से निपटने के बाद खा-पीकर काम पर चला जाता और लौटकर सो जाता। कभी-कभी तो उसे भ्रम होता कि वह काम करने के लिए ही जी रहा है। उसके जीवन का पूरा चक्र काम को ध्यान में रखकर बना है। वह खाता है, विश्राम करता है ताकि काम कर सके। उसकी सारी गतिविधियां काम की तैयारी से जुड़ी हैं। उसकी संतानें और पत्नी की जिम्मेदारियां प्रभु ने इसलिए दी हैं ताकि उसे काम करने की वजह मिले। ये ठोस वजहें न होतीं तो शायद वह कठिन श्रम से भरे काम से विरत हो जाता।
वह दिन और दिनों से कुछ अलग सा था। मिल में असिस्टेंट मैनेजर साहब ने उसे अपने घर भेजा था मोबाइल फोन लाने, जिसे वे भूल आये थे। ड्राइवर गाड़ी लेकर उनके बच्चे को छोड़ने गया था जो दूर के स्कूल में पढ़ता था। आफिसर्स क्वार्टर मिल परिसर में ही था। सो उसे भेजा गया। वह बंगलेनुमा क्वार्टर में पहुंचा तो देखकर दंग रह गया। क्वार्टर के सामने तरह तरह के फूल। दरवाजे की घंटी बजायी तो खूबसूरत परी जैसी मेमसाहब ने दरवाज़ा खोला। ना-ना करने पर भी उसे अन्दर बिठाया गया। गंदी चप्पल को वह बाहर ही उतार आया था किन्तु अन्दर खूबसूरत कालीन पर पांव रखने का उसमें साहस नहीं हो रहा था। सोफे पर आहिस्ते से बैठा वह थोड़ा धंस गया। उसे चाय पिलायी गयी थी। इस बीच चार साल की एक गुड़िया सी बच्ची वहां परदों के बीच से झांक रही थी। वह साहब की बेटी थी। उसे अब तक पता न था कि ज़िन्दगी इतनी सुन्दर भी हो सकती है। खूबसूरत घर, सुन्दर पत्नी, सलोने बच्चे। साहब के घर से लौटने के बाद वह देर तक अनमना रहा। मन में कहीं न कहीं हसरत ने करवट ली। काश उसे भी ऐसी ज़िन्दगी मिली होती।
अगले दिन जब वह नींद से उठा तो उसे दुनिया बदली बदली सी नज़र आयी। उसने बरसों बाद फिर सपना देखा था। फूलों की क्यारियों का, फूलों के बाग का। हां उसने से एक खूबसूरत फूलबागान देखा था। फिर क्या था सपनों से निकल कर फूलबागान उसके जीवन को सुगंधित करने लगा था। एक महक थी केमिकल से नहाये पाट में जिन्हें वह चटकल में सिर पर ढोता था। बोझ उसे फूलों सा हल्का लगने लगता कई बार। धीरे-धीरे उसने जागती आंखों से भी सपने देखने शुरू किये। उसे लगा जीवन बदला जा सकता है। उसने हाजिरी बाबू से लेकर दरवानों और मिल के ट्रेड यूनियन नेताओं को खास तौर पर सलामी दागनी शुरू की। उसके स्वभाव में जो रुखापन था वह दूर होने लगा था। लोगों का व्यवहार भी उसके प्रति बदलने लगा। और वह दिन भी आया जब उसे भी उन लोगों में शुमार कर लिया गया जिन्हें खूब ओवरटाइम मिलते। उसकी कमाई बढ़ने लगी। जैसे जैसे कमाई बढ़ी उसने बचत पर और ज़ोर देना शुरू किया। वह गरीबी के चक्र से बाहर आकर रहेगा उसने प्रण किया और अपने सोचे को हक़ीकत में बदलने का उपक्रम भी शुरू कर दिया। उसने रिक्शा ख़रीदा और दूसरे को चलाने के लिए किराये पर दे दिया। रिक्शा वाले रोज सुबह उसे पहले रिक्शे का किराया देते फिर दिन भर के लिए रिक्शा ले जाते। धीरे-धीरे वह आठ रिक्शों का मालिक बन गया। आय तो बढ़ी लेकिन रिक्शावालों से आये दिन बकझक भी होता और सुबह सुबह उसका मन खराब हो जाता। उसने कमाई को दूसरा रास्ता खोजना शुरू किया और वह आखिरकार मिल गया।
उसने रिक्शे बेच दिये और एक पुराना बेडफोर्ड ट्रक खरीद लिया, बंगला डाला। यह ट्रक उसी मिल में एक ठेकेदार के अधीन चलने लगा। ट्रक उसे औने पौने दाम पर इसलिए मिल गया क्योंकि उसके पेपर नहीं थे। यह ट्रक कोलकाता फूलबागान में कटइया के लिए जा रहा था। वहां ट्रक के कबाड़ खरीदे जाते हैं और उसके पुर्जे-पुर्जे अलग करके फिर बेचे जाते हैं। टायर अलग, चेचिस अलग। नट बोल्टू अलग। पुराने ट्रकों में ये पुर्जे लगते हैं। यह पुराने ट्रकों को कब्रगाह था जहां बीमार ट्रक किसी तरह लड़खड़ाते अथवा किसी अन्य ट्रक से खींच कर ले जाये जाते और कभी वापस नहीं आते। घंटे दो घंटे में उनका अस्तित्व खो जाता।
वह जिस चाय दुकान पर बैठा चाय पी रहा था वहीं सौदा हो रहा था। पुराने खटारे बेडफोर्ड का जो दाम लगा वह महंगू को सस्ता लगा और उसने दाम बढ़ाकर ट्रक खरीद लिया। ठेकेदार को किराये पर दे दिया। ठेकेदार के पास चार ऐसे ट्रक पहले ही थे जिनके पास पेपर नहीं थे। ये ट्रक मिल में पाट और उससे बने उत्पाद को एक स्थान से ढोकर दूसरे स्थान पर ले जाने के काम में लगे थे। चूंकि ये मिल से बाहर जाते नहीं थे ऐसे में उनके लिए नम्बर प्लेट की आवश्यकता नहीं थी और ना ही उनके पेपर्स की। सो हर ट्रक का नम्बर अपनी इच्छानुसार रखा गया था। जिस नाम से उसे उन्हें पुकारा जा सके। ठेकेदार के पास फूलबागान में कटइया पर गये एक ट्रक के पेपर सस्ते में मिल गये थे। सो जरूरत पड़ी किसी ट्रक को मिल परिसर से बाहर निकालने की तो वह उन पेपरों के साथ बाहर निकालता। मिल के बाहर उसके कोई भी ट्रक निकलता तो एक ही नम्बर के साथ। इस प्रकार अब एक पेपर व वैध नम्बर पर चार ट्रक मिल में पहले ही चल रहे थे। महंगू ने डब्ल्यूबी के आगे अपनी पसंद का अंक लगाया और मिल में उसका प्रवेश करा दिया। उसने रिक्शे बेच दिये थे और कम्पनी से कर्ज लिया था और महाजनों से सूद पर रुपये किन्तु वह ट्रक मालिक बन गया था। ठेकेदार से जो किराया तय हुआ था उसके आधार पर वह जल्द ही कर्ज से मुक्त हो जायेगा और फिर बढ़ी हुई आय से उसकी ज़िन्दगी। उसकी जिन्दगी में भी फूल ही फूल होंगे। हरियाली होगी।
ठेकेदार ने एक माह तो ट्रक का किराया वक्त पर दिया किन्तु उसके बाद उसने अपना पैंतरा दिखाना शुरू किया। किराया देने में उसका टालमटोल का रवैया उसके लिए नागवार गुज़रता किन्तु महंगू के पास कोई अन्य विकल्प न था। महाजन जब घर पर आ धमकते तो वह ठेकेदार के यहां चिरौरी करने पहुंचता और अपने प्राप्य किराये का मामूली सा हिस्सा लेकर लौटता और किसी प्रकार साहूकारों से पिंड छुड़ाता। अब उसे सपने आने बंद हो गये थे। काम में मन नहीं लगता। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। स्वभाव में रुखापन आ गया था। बात-बात में झल्लाता। वह इधर दारू भी पीने लगा था। अब वह मिलनसार नहीं रह गया था। उसके व्यवहार में आये परिवर्तन के बाद उसे ओवरटाइम मिलना भी बंद हो गया। मिल में लिये कर्ज की वसूली के लिए उसके वेतन का एक बड़ा हिस्सा पगार से कट जाता था। काम पर न जाने की इच्छा व अस्वस्थता के कारण उसके नागे बढ़ते गये सो वेतन और सिमटता गया। वह साहूकारों को जितना पैसा हर माह लौटाता उससे अधिक ले लेता। इस प्रकार वह कर्ज के दलदल में फंसता चला गया। ठेकेदार के प्रति उसकी नफरत बढ़ती गयी। मूल कारण वही था महंगू के दुखों का। उसने ठेकेदार के चंगुल से निकलने का संकल्प लिया।
उसने तय किया कि वह किसी पुराने ट्रक का पेपर खरीद लेगा और अपना ट्रक जल्द मिल से निकाल कर सीईएससी में चलने के लिए दे देगा, वहां पैसा अधिक मिलेगा। और कर्ज मुक्त हो जायेगा। और ठेकेदार से पैसा वसूली के लिए वह थाने तक जायेगा। यह बात उसके मन में थी जो नशे की झोंक में उसके मुंह से निकल गयी। उसने रात ठेकेदार के घर जा उसे खुली चेतावनी दे डाली कि उसके पैसे लौटा दे वरना थाना कचहरी सब होगा।
अगले दिन जब वह मिल में पहुंचा तो उसके पैर के नीचे से ज़मीन खिसकती नज़र आयी। छह आदमी बड़े हथौड़ों के साथ उसके ट्रक पर वार कर रहे थे। और ट्रक के विछिन्न हिस्से एक अन्य ट्रक में लादे जा रहे थे। वहां फूलबागान का वही ट्रक दलाल बैठा था ठेकेदार के साथ जिसने उसके ट्रक का पहले सौदा किया था। उसे समझते देर न लगी कि क्या हो रहा है। वह वहां से भागते हुए सीधे थाने पहुंचा जहां उसने ठेकेदार के खिलाफ रपट दर्ज करायी कि उसके ट्रक को क्षति पहुंचायी जा रही है जो जूट मिल में चलता है। पुलिस के साथ जब वह मिल में पहुंचा तो उसके ट्रक का नामोनिशान वहां नहीं था। दलाल वहां से फूलबागान जा चुका था। पुलिस ने मिल में ट्रक न पाकर महंगू से उसके कागजात मांगे। अब महंगू को काटो तो खून नहीं। उसने जब बताया कि बिना पेपर के ट्रक मिल में चल रहा था तो उसे पुलिस ने अवैध कारोबार में लिप्त होने के आरोप में लॉकअप में बंद कर दिया।
महंगू को फूलबागान का सपना महंगा पड़ा।
साभारः नया ज्ञानोदय
कहानी
वह मज़दूर था चटकल का। उसे सपने एकदम नहीं आते थे। अलबत्ता वह सोचता कि काश उसकी ज़िन्दगी सपना ही होती और आंख खुलते ही वह सपना टूट जाता। वह जिस हक़ीकत में लौटता वह मजदूर जीवन न होता। कठिन मशक्कत के बाद रोटियां जुटती हैं। चार-चार बच्चे हो चुके थे। जिनमें तीन तो बेटियां थीं। कैसे वह उन्हें पार लगायेगी यह चिन्ता उसे अभी से सताने लगी थी। हालांकि चिन्ता करने के लिए भी उसके पास वक्त सीमित था क्योंकि काम से बाद उसके पास इतनी थकान रहती थी कि वह बाक़ी समय में खूब सोता। नींद से उठता तो नित्यक्रम से निपटने के बाद खा-पीकर काम पर चला जाता और लौटकर सो जाता। कभी-कभी तो उसे भ्रम होता कि वह काम करने के लिए ही जी रहा है। उसके जीवन का पूरा चक्र काम को ध्यान में रखकर बना है। वह खाता है, विश्राम करता है ताकि काम कर सके। उसकी सारी गतिविधियां काम की तैयारी से जुड़ी हैं। उसकी संतानें और पत्नी की जिम्मेदारियां प्रभु ने इसलिए दी हैं ताकि उसे काम करने की वजह मिले। ये ठोस वजहें न होतीं तो शायद वह कठिन श्रम से भरे काम से विरत हो जाता।
वह दिन और दिनों से कुछ अलग सा था। मिल में असिस्टेंट मैनेजर साहब ने उसे अपने घर भेजा था मोबाइल फोन लाने, जिसे वे भूल आये थे। ड्राइवर गाड़ी लेकर उनके बच्चे को छोड़ने गया था जो दूर के स्कूल में पढ़ता था। आफिसर्स क्वार्टर मिल परिसर में ही था। सो उसे भेजा गया। वह बंगलेनुमा क्वार्टर में पहुंचा तो देखकर दंग रह गया। क्वार्टर के सामने तरह तरह के फूल। दरवाजे की घंटी बजायी तो खूबसूरत परी जैसी मेमसाहब ने दरवाज़ा खोला। ना-ना करने पर भी उसे अन्दर बिठाया गया। गंदी चप्पल को वह बाहर ही उतार आया था किन्तु अन्दर खूबसूरत कालीन पर पांव रखने का उसमें साहस नहीं हो रहा था। सोफे पर आहिस्ते से बैठा वह थोड़ा धंस गया। उसे चाय पिलायी गयी थी। इस बीच चार साल की एक गुड़िया सी बच्ची वहां परदों के बीच से झांक रही थी। वह साहब की बेटी थी। उसे अब तक पता न था कि ज़िन्दगी इतनी सुन्दर भी हो सकती है। खूबसूरत घर, सुन्दर पत्नी, सलोने बच्चे। साहब के घर से लौटने के बाद वह देर तक अनमना रहा। मन में कहीं न कहीं हसरत ने करवट ली। काश उसे भी ऐसी ज़िन्दगी मिली होती।
अगले दिन जब वह नींद से उठा तो उसे दुनिया बदली बदली सी नज़र आयी। उसने बरसों बाद फिर सपना देखा था। फूलों की क्यारियों का, फूलों के बाग का। हां उसने से एक खूबसूरत फूलबागान देखा था। फिर क्या था सपनों से निकल कर फूलबागान उसके जीवन को सुगंधित करने लगा था। एक महक थी केमिकल से नहाये पाट में जिन्हें वह चटकल में सिर पर ढोता था। बोझ उसे फूलों सा हल्का लगने लगता कई बार। धीरे-धीरे उसने जागती आंखों से भी सपने देखने शुरू किये। उसे लगा जीवन बदला जा सकता है। उसने हाजिरी बाबू से लेकर दरवानों और मिल के ट्रेड यूनियन नेताओं को खास तौर पर सलामी दागनी शुरू की। उसके स्वभाव में जो रुखापन था वह दूर होने लगा था। लोगों का व्यवहार भी उसके प्रति बदलने लगा। और वह दिन भी आया जब उसे भी उन लोगों में शुमार कर लिया गया जिन्हें खूब ओवरटाइम मिलते। उसकी कमाई बढ़ने लगी। जैसे जैसे कमाई बढ़ी उसने बचत पर और ज़ोर देना शुरू किया। वह गरीबी के चक्र से बाहर आकर रहेगा उसने प्रण किया और अपने सोचे को हक़ीकत में बदलने का उपक्रम भी शुरू कर दिया। उसने रिक्शा ख़रीदा और दूसरे को चलाने के लिए किराये पर दे दिया। रिक्शा वाले रोज सुबह उसे पहले रिक्शे का किराया देते फिर दिन भर के लिए रिक्शा ले जाते। धीरे-धीरे वह आठ रिक्शों का मालिक बन गया। आय तो बढ़ी लेकिन रिक्शावालों से आये दिन बकझक भी होता और सुबह सुबह उसका मन खराब हो जाता। उसने कमाई को दूसरा रास्ता खोजना शुरू किया और वह आखिरकार मिल गया।
उसने रिक्शे बेच दिये और एक पुराना बेडफोर्ड ट्रक खरीद लिया, बंगला डाला। यह ट्रक उसी मिल में एक ठेकेदार के अधीन चलने लगा। ट्रक उसे औने पौने दाम पर इसलिए मिल गया क्योंकि उसके पेपर नहीं थे। यह ट्रक कोलकाता फूलबागान में कटइया के लिए जा रहा था। वहां ट्रक के कबाड़ खरीदे जाते हैं और उसके पुर्जे-पुर्जे अलग करके फिर बेचे जाते हैं। टायर अलग, चेचिस अलग। नट बोल्टू अलग। पुराने ट्रकों में ये पुर्जे लगते हैं। यह पुराने ट्रकों को कब्रगाह था जहां बीमार ट्रक किसी तरह लड़खड़ाते अथवा किसी अन्य ट्रक से खींच कर ले जाये जाते और कभी वापस नहीं आते। घंटे दो घंटे में उनका अस्तित्व खो जाता।
वह जिस चाय दुकान पर बैठा चाय पी रहा था वहीं सौदा हो रहा था। पुराने खटारे बेडफोर्ड का जो दाम लगा वह महंगू को सस्ता लगा और उसने दाम बढ़ाकर ट्रक खरीद लिया। ठेकेदार को किराये पर दे दिया। ठेकेदार के पास चार ऐसे ट्रक पहले ही थे जिनके पास पेपर नहीं थे। ये ट्रक मिल में पाट और उससे बने उत्पाद को एक स्थान से ढोकर दूसरे स्थान पर ले जाने के काम में लगे थे। चूंकि ये मिल से बाहर जाते नहीं थे ऐसे में उनके लिए नम्बर प्लेट की आवश्यकता नहीं थी और ना ही उनके पेपर्स की। सो हर ट्रक का नम्बर अपनी इच्छानुसार रखा गया था। जिस नाम से उसे उन्हें पुकारा जा सके। ठेकेदार के पास फूलबागान में कटइया पर गये एक ट्रक के पेपर सस्ते में मिल गये थे। सो जरूरत पड़ी किसी ट्रक को मिल परिसर से बाहर निकालने की तो वह उन पेपरों के साथ बाहर निकालता। मिल के बाहर उसके कोई भी ट्रक निकलता तो एक ही नम्बर के साथ। इस प्रकार अब एक पेपर व वैध नम्बर पर चार ट्रक मिल में पहले ही चल रहे थे। महंगू ने डब्ल्यूबी के आगे अपनी पसंद का अंक लगाया और मिल में उसका प्रवेश करा दिया। उसने रिक्शे बेच दिये थे और कम्पनी से कर्ज लिया था और महाजनों से सूद पर रुपये किन्तु वह ट्रक मालिक बन गया था। ठेकेदार से जो किराया तय हुआ था उसके आधार पर वह जल्द ही कर्ज से मुक्त हो जायेगा और फिर बढ़ी हुई आय से उसकी ज़िन्दगी। उसकी जिन्दगी में भी फूल ही फूल होंगे। हरियाली होगी।
ठेकेदार ने एक माह तो ट्रक का किराया वक्त पर दिया किन्तु उसके बाद उसने अपना पैंतरा दिखाना शुरू किया। किराया देने में उसका टालमटोल का रवैया उसके लिए नागवार गुज़रता किन्तु महंगू के पास कोई अन्य विकल्प न था। महाजन जब घर पर आ धमकते तो वह ठेकेदार के यहां चिरौरी करने पहुंचता और अपने प्राप्य किराये का मामूली सा हिस्सा लेकर लौटता और किसी प्रकार साहूकारों से पिंड छुड़ाता। अब उसे सपने आने बंद हो गये थे। काम में मन नहीं लगता। स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। स्वभाव में रुखापन आ गया था। बात-बात में झल्लाता। वह इधर दारू भी पीने लगा था। अब वह मिलनसार नहीं रह गया था। उसके व्यवहार में आये परिवर्तन के बाद उसे ओवरटाइम मिलना भी बंद हो गया। मिल में लिये कर्ज की वसूली के लिए उसके वेतन का एक बड़ा हिस्सा पगार से कट जाता था। काम पर न जाने की इच्छा व अस्वस्थता के कारण उसके नागे बढ़ते गये सो वेतन और सिमटता गया। वह साहूकारों को जितना पैसा हर माह लौटाता उससे अधिक ले लेता। इस प्रकार वह कर्ज के दलदल में फंसता चला गया। ठेकेदार के प्रति उसकी नफरत बढ़ती गयी। मूल कारण वही था महंगू के दुखों का। उसने ठेकेदार के चंगुल से निकलने का संकल्प लिया।
उसने तय किया कि वह किसी पुराने ट्रक का पेपर खरीद लेगा और अपना ट्रक जल्द मिल से निकाल कर सीईएससी में चलने के लिए दे देगा, वहां पैसा अधिक मिलेगा। और कर्ज मुक्त हो जायेगा। और ठेकेदार से पैसा वसूली के लिए वह थाने तक जायेगा। यह बात उसके मन में थी जो नशे की झोंक में उसके मुंह से निकल गयी। उसने रात ठेकेदार के घर जा उसे खुली चेतावनी दे डाली कि उसके पैसे लौटा दे वरना थाना कचहरी सब होगा।
अगले दिन जब वह मिल में पहुंचा तो उसके पैर के नीचे से ज़मीन खिसकती नज़र आयी। छह आदमी बड़े हथौड़ों के साथ उसके ट्रक पर वार कर रहे थे। और ट्रक के विछिन्न हिस्से एक अन्य ट्रक में लादे जा रहे थे। वहां फूलबागान का वही ट्रक दलाल बैठा था ठेकेदार के साथ जिसने उसके ट्रक का पहले सौदा किया था। उसे समझते देर न लगी कि क्या हो रहा है। वह वहां से भागते हुए सीधे थाने पहुंचा जहां उसने ठेकेदार के खिलाफ रपट दर्ज करायी कि उसके ट्रक को क्षति पहुंचायी जा रही है जो जूट मिल में चलता है। पुलिस के साथ जब वह मिल में पहुंचा तो उसके ट्रक का नामोनिशान वहां नहीं था। दलाल वहां से फूलबागान जा चुका था। पुलिस ने मिल में ट्रक न पाकर महंगू से उसके कागजात मांगे। अब महंगू को काटो तो खून नहीं। उसने जब बताया कि बिना पेपर के ट्रक मिल में चल रहा था तो उसे पुलिस ने अवैध कारोबार में लिप्त होने के आरोप में लॉकअप में बंद कर दिया।
महंगू को फूलबागान का सपना महंगा पड़ा।
साभारः नया ज्ञानोदय
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