कहानी
-डॉ.अभिज्ञात
नरेश दंग रह गया, जब स्वयं नवजात बच्चे की मां ने लगभग उनींदी स्थिति में उससे कहा-"डा.प्लीज़, थोड़ी मेरी हेल्प कीजिए। यह बचना नहीं चाहिए।"
उसे उपने कानों पर सहसा यकीन नहीं हुआ। उसे लगा
उसे सुनने में कुछ ग़लती हुई है। उसने फिर पूछा-"क्या कहा
आपने नीना जी?
-"आपने ठीक सुना।
आप बच्चे को बचाने की कोशिश मत कीजिए। मैं नहीं चाहती कि यह रहे। यह मेरे कैरियर का
सवाल है। मैं एक एयर होस्टेस हूं। मेरे कैरियर में बच्चे व पति का कोई स्थान नहीं है।"
-"फिर आपने ऐसा
किया ही क्यों? क्या आप नहीं जानतीं थीं कि यह होगा?"
-"अब छोड़िए भी कि क्या मैं जानती
थी और क्या नहीं। दरअसल मैंने जो कुछ सोचा था वह नहीं हुआ। एकदम नहीं। मैं जिससे प्यार
करती थी मैं उसके साथ घर बसाना चाहती थी। उसने ऐन वक्त पर धोखा दे दिया। शादी से ही
इनकार कर गया। मैं पहले ही बच्चा गिराना चाहती थी लेकिन उसने झांसा दिया कि ऐसा क़दम
उठाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उसके घर वाले उसे इसी हालत में अपना लेंगे। वह जब
अपनी बात से फिरा तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने साफ़ कह दिया अब कुछ नहीं
हो सकता काफी वक़्त बीत चुका है और अब एबार्शन नहीं हो सकता। मैंने इसे मज़बूरी में
जन्म दिया है महज अपनी जान बचाने के लिए। मैं अपने प्रेमी को खो चुकी हूं। अब नौकरी
से भी हाथ नहीं धोना चाहती और ना ही लोगों के ताने सुनने के लिए तैयार हूं। मैं इस
बच्चे से छुटकारा पाना चाहती हूं। यह तक नहीं जानना चाहती कि यह बेटा है या बेटी। मेरे
लिए बस यह मुसीबत है और मुझे इससे छुटकारा दिलाइये। मैं आपको लाख-डेढ़ लाख दे सकती
हूं। ले लीजिए। आपके काम आयेंगे। देख रही हूं आप इसकी सेहत को लेकर परेशान हैं। कह
रहे थे कि आठ महीने का ही है इसलिए हालत थोड़ी गंभीर है। आप यूं ही छोड़ दीजिए न। अपने
आप आपका और मेरे दोनों का काम हो जायेगा।"
-"माफ़ कीजिए. मैं
ऐसा नहीं कर सकता। यह मेरा बच्चा है। मेरा पहला बच्चा जिसे मैंने जन्म दिया है। मेरे
डॉक्टरी के कैरियर की पहली उपलब्धि। थोड़ा कमज़ोर ज़रूर है लेकिन जल्द ही ठीक हो जायेगा
और मेरा यक़ीन है यह किसी भी मामले में किसी भी बच्चे से पीछे नहीं रहेगा। यह बेटा
है। मेरा बेटा जिसे मैंने जन्म दिया है। आपसे अधिक मेहनत मैंने की है। मेरी जान टंगी
हुई थी इसे लेकर। कितना सुन्दर है, कितना प्यारा। जल्द ही यह
हंसेगा। कुछ दिन में बोलेगा। और यह तो तय है कि रहेगा दुनिया में। सालों साल। हमारे
बाद भी।"
-"यू शटअप। यह तुम्हारा
बच्चा कैसे हो गया डॉक्टर?... अच्छे सिरफिरे से पाला पड़ा है।
कुछ कर सकते हो तो करो वरना मैं कोई दूसरा उपाय करूंगी। तुम नहीं मानोगे तो इस नर्सिंग
होम का मालिक मान जायेगा। यही होता कि जो मैं तुम्हें दे रही हूं वह उसके हिस्से चला
जायेगा। कुछ और भी लगा तो मैं उसे दे दूंगी। खैर, इससे तुम्हारा
क्या। तुम तो बस यह बताओ कि मेरा काम करोगे या नहीं। तुम्हें बस इतना ही करना है कि
उसकी तबीयत बिगड़ ही है उसका इलाज मत करो। सुबह तक सब अपने आप ठीक हो जायेगा। तुम पर
कोई उंगली नहीं उठेगी। तुम्हारे इंचार्ज को भी कुछ नहीं पता चलेगा। और चाहो तो.....
तुम डॉक्टर हो। यह खेल मिनटों में सलट सकता है।"
-"आप अपनी लिमिट
में रहिए और मैं जो कर रहा हूं बच्चे की भलाई के लिए करने दीजिए।"
नरेश कुछ सोचता हुआ तेजी से उस कमरे से बाहर निकला।
उसने अपने पिता को फ़ोन लगाया-"पापा मैंने उस बच्चे को जन्म
दिया है जिसके बारे में कल आपको बता रहा था। मां-बच्चा दोनों ठीक हैं। बस बच्चा थोड़ा
कमज़ोर है पर स्थिति काबू में है। लेकिन एक मुश्क़िल खड़ी हो गयी है बच्चे की मां उसे
अपने पास नहीं रखना चाहती। मैं सोचता हूं क्यों न हम ही उसे अपने पास रख लें।"
-"पर बेटा। हम दूसरे
के बच्चे को कैसे ले सकते हैं। उसकी तमाम ज़िम्मेदारियां उठानी होंगी। यह एक गंभीर
मामला है। आनन-फानन में निर्णय नहीं लिया जा सकता। बेटा अब में रिटारमेंट के क़रीब
हूं। मैं अभी तुम भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हुआ हूं। फिर एक और ज़िम्मेदारी
उठाना मेरे वश में नहीं है।"
-"पापा मैं उसे
इस हालत में नहीं छोड़ सकता। उसकी मां उसे नहीं छोड़ेगी और मैं अपने पहले बच्चे को
यूं नहीं मरने दूंगा। आप कुछ नहीं कर सकते तो मैं इसे गोद ले लूंगा।"
-"अरे अभी तुम्हारी
शादी तक नहीं हुई। तुम यह निर्णय अकेले कैसे ले सकते हो? इतना
सेंटीमेंटल बनने से काम नहीं चलेगा। बी प्रैक्टिकल।"
-"सारी समस्या तो
अधिक प्रैक्टिकल बनने से ही पैदा हुई है। आप कुछ कीजिए। आपको कोई न कोई रास्ता निकालना
ही होगा। आप इस समस्या से भले मुंह फेर लें मैं मुंह नहीं फेर सकता। यह मेरे वश में
नहीं है।"
अभी नरेश ने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया ही था कि फ़ोन
बजने लगा। उसने मोबाइल पर नाम देखा। डॉ.आरएमजी ....यह उसके बॉस का फ़ोन था। इस नर्सिंग
होम के मालिक का। पहले तो उसका मन बात करने का नहीं कर रहा था किन्तु अधिक देर तक रिंग
होती रही तो उसने फ़ोन रिसीव कर लिया-"डाक्टर नरेश! यह क्या बचपना है? क्लाइंट की मदद करो। हमें अपना दिमाग़
ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। वह अच्छी ख़ासी रकम दे रही है। मैं चाहता
हूं तुम मामले को ठीक से हैंडल कर लो। यह आये दिन का मामला है। तुम जो चाहो बना लो।
हम भी कुछ न कुछ पा जायेंगे। तुम्हारे आटीट्यूड से तो हमारा धंधा चौपट हो जायेगा। करोड़ों
रुपये घुस गये हैं यह नर्सिंग होम बनाने में। क्या आदर्श बघारने के लिए हमने डॉक्टरी
का प्रोफेशन अपनाया था। यह काम हम नहीं करेंगे तो लोग अपने यहां क्या करने आयेंगे।
नार्मल डिलीवरी का केस को कहीं भी हैंडल हो जाता है क्या उन्हें नहीं पता है। सत्तर-अस्सी
हजार तक लेते हैं हम। क्लाइंट को भी तो कुछ सुविधाएं देनी होंगी। क्लाइंट को क्या चाहिए
यह हम नहीं तय कर सकते। यह उसकी बात है। हमें उसे कोआपरेट करना होगा। सबकी अपना मुश्कि़लें
होती हैं और अपने अपने लाज़िक। उन्हें अपने ढंग से जीने दो। तुम क्या सोचते हो तुम
नहीं करोगे तो दूसरे डॉक्टर नहीं हैं क्या? तुम्हारे सभी कलीग
यही करते हैं। तुम अभी नये-नये हो। तुम्हें यह सब जल्द से जल्द
सीख लेना चाहिए। इमोशन बेवकूफ़ों की चीज़ है। अभी मेरे पास फ़ोन आया था नीना का। डू
इट ह्वाट शी वांट।"
-"लेकिन सर...।"
उसे कुछ बोलने का मौका नहीं दिया गया था। फ़ोन
डिस्कनेक्ट कर दिया गया। इसी बीच नीना की मां वहां गुस्से से पैर पटकती हुई आ पहुंची।
उसके साथ एक काला-कलूटा आदमी था। वह हाव-भाव से ही नशे में धुत्त लग रहा था। नरेश ने
दिमाग़ पर ज़ोर डाला तो पहचान गया। वह इसी मोहल्ले में ड्रेन की साफ़-सफ़ाई करता है।
जब वह नाइट ड्यूटी के बाद सुबह घर जाने के लिए मोटरसाइकिल पर चढ़ने जाता था तो दो एक
बार ड्रेन साफ़ करने के उपक्रम में देख चुका है। कभी-कभार वह रात में नशे में धुत्त
हो हंगामा भी करता देखा गया है। पास ही बनी झोपड़पट्टियों में से किसी एक में वह रहता
है। जल्द ही नरेश को नीना की मां की प्रतिक्रिया से यह भान हो गया कि बच्चे को झाड़ूदार
के हवाले करने की योजना बनी है। नीना की मां ने उससे यह किया है कि वह बच्चे को किसी
झाड़ी में छोड़ आये...बदले में उसे पांच हजार रुपये दिये जाने हैं।
नरेश ने नीना की मां को बच्चे के पास जाने से रोक
दिया। वह उस पर बिफर पड़ी थी-"तुम चाहते क्या हो? तुम जैसे डॉक्टर बहुत देखे हैं। हमारा बच्चा है, हम
जो चाहें करें। तुम बेवकूफ़ हो। तुम्हें तो हम बहुत पैसे दे रहे थे। अब देखो कि वही
काम कैसे केवल पांच हजार रुपये में हो रहा है। झाड़ियों में से कोई जानवर बच्चे को
उठा ले जायेगा और प्राब्लम साल्व। हम परेशान हैं... हमारी परेशानी और ना बढ़ाओ। हालांकि
तुम हमारे लिए कुछ नहीं कर रहे हो फिर भी तुम्हें भी कुछ- न- कुछ दे ही देंगे। बस मुंह
बंद रखो वरना हम तुम्हारे मालिक से सीधे सलट लेंगे।"
नरेश अड़ गया। उसने मामला पुलिस में ले जाने की
धमकी दी। इसी बीच फ़ोन की रिंग फिर हुई। उसके पिता का फ़ोन था। उनके लहज़े में खुशी
साफ झलक रही थी-"बेटे तुम्हारा काम हो गया। मेरे
एक दोस्त है, वे संतानहीन हैं। वे तुम्हारे बच्चे को गोद ले लेंगे।
तुम बच्चे की मां और उसके घरवालों को वहीं रोककर रखो। हम वकील के साथ वहीं पहुंच रहे
हैं। कानूनी लिखा-पढ़ी के साथ गोद लिया जायेगा ताकि बाद में कोई
लफ़ड़ा नहीं हो।"
इधर, नीना और उसकी मां
ने तुरंत बच्चे को दूसरे को देने पर अपनी हामी भर दी और वे तुरंत घर लौटने की तैयारी
करने लगे। नरेश ने काफी अनुरोध किया कि वे थोड़ी देर रुकें जिससे कि कानूनी लिखा-पढ़ी
हो सके। वे क़ानून का लेने की धमकी के बाद ही रुके। थोड़ी ही देर में नरेश के पिता,
उनके मित्र, मित्र की पत्नी व उनका वकील वहां हाज़िर
थे। हस्ताक्षर कर लिये गये।
इधर वे सभी बच्चे की ओर मुखातिब थे जबकि नीना व
उसकी मां ने बच्चे को जन्म के बाद से उसकी तरफ़ देखा तक नहीं था। वे दोनों नीचे उतरीं
और कार से अपने गंतव्य की कूच कर गयीं। अभी भी भोर की पहली किरण नहीं फूटी थी। तमाम
मुश्क़िलों के बाद बरसों से तरसती एक अधेड़ दम्पति को इस तरह संतान नसीब हुई थी लेकिन
यह क्या.....। बच्चे की नयी मां ने बहुत हौले से उसे छुआ लेकिन बच्चे में कोई हलचल
नहीं हुई। वह फूट-फूट कर रोने लगी। बच्चे को एक वैध मां-बाप तो मिल गये थे लेकिन उसने
उन्हें देखने से पहले ही दुनिया छोड़ दी थी। नरेश ने पाया कि बच्चे का ही नहीं उसका
अपना शरीर भी जैसे काठ का हो गया हो। आखिर औलाद तो डॉक्टर नरेश ने ही खोयी थी।
--------
साभारःआउटलुक
No comments:
Post a Comment